॥ राधा स्वामी बाबा प्यारोँ जी ॥
एक साधू रस्ते से जा रहा था, तो उसको एक
भीड़ दिखाई दी। उसने आगे जाके
देखा कि वहां एक मदारी एक बन्दर को हंटर मार-
मार के नचा रहा था और छड़ी मार कर बैठने
को कह रहा था ये देख साधू को दया आ
गयी और उसने मदारी से कुछ रुपे में उस बन्दर
को खरीद लिया और आज़ाद कर दिया ।
अब इस कहानी का सार ये है कि हम लोग उस
बन्दर की तरह हैं और जो काल रूपी मदारी के आगे
नाच रहे हैं और अपने कर्मो का हिसाब-किताब दे
रहे हैं और जो साधू है वो हमारे संत या गुरु हैं
जो काल को हमारा हिसाब- किताब
चूका करके हमे आज़ाद करने आते हैं ।